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Шри Шикшаштака Аудио

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Шри Шикшаштака Аудио на Английском языке


Содержание
Предисловие
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Текст второй
Текст третий
Текст четвертый
Текст пятый
Текст шестой
Текст седьмой
Текст восьмой


Шри Шикшаштака
санскрит
(деванагари)
चेतोदर्पणमार्जनं भव-महादावाग्नि-निर्वापणं
श्रेयः-कैरवचन्द्रिकावितरणं विद्यावधू-जीवनम् ।
आनन्दअम्बुधिवर्धनं प्रतिपदं पूर्णामृतास्वादनं
सर्वात्मस्नपनं परं विजयते श्रीकृष्ण संकीर्तनम् ॥१॥

नाम्नां अकारि बहुधा निजसर्वशक्तिः
तत्रार्पिता नियमितः स्मरणे न कालः ।
एतादृशी तव कृपा भगवन्ममापि
दुर्दैवम् ईदृशम् इहाजनि नअनुरागः ॥२॥

तृणादपि सुनीचेन तरोरपि सहिष्णुना
अमानिना मानदेन कीर्तनीयः सदा हरिः ॥३॥

न धनं न जनं न सुन्दरीम्
कवितां वा जगदीश कामये ।
मम जन्मनि जन्मनि ईश्वरे
भवताद् भक्तिः अहैतुकी त्वयि ॥४॥

अयि नन्द-तनूज किंकरम्
पतितं मां विषमे भवाम्बुधौ ।
कृपया तव पादपंकज-
स्थितधूलिसदृशं विचिंतय ॥५॥

नयनं गलदश्रुधारया
वदनं गद्गदरुद्धया गिरा ।
पुलकैर् निचितं वपुः कदा
तव नाम-ग्रहणे भविष्यति ॥६॥

युगायितं निमेषेण चक्षुषा प्रावृषायितम्
शून्यायितं जगत् सर्वं गोविन्द-विरहेण मे ॥७॥

आश्लिष्य वा पादरतां पिनष्टु माम्
अदर्शनान् मर्महतां करोतु वा ।
यथा तथा वा विदधातु लंपटः
मत्प्राणनाथस् तु स एव नापरः ॥८॥


санскрит



География vedadev.ru

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